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दिनचर्या भाग 1 : स्वस्थ्य कौन है?

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🌅  *दिनचर्या भाग एक*   🌅         होली बीत चुकी है आप सब के लिए होली के विभिन्न रंगों के प्रयोग व लाभ पर भी होली पूर्व लेख दिया था, जिज्ञासु लोगों ने इसका लाभ उठाया। अब दिनचर्या की प्रतिक्रिया शुरू करेंगे।  🏵️ *दिनचर्या का भाग* 🏵️      स्वस्थ्य दिनचर्या हमारे जीवन का बेहद जरूरी आयाम है। स्वास्थय से ही जुड़ा हुआ हमारा त्रिदोष है इस विषय व्यापक चर्चा की जाये उसके पूर्व आपको अपनी दिन-चर्या का ज्ञान होना वेहद आवश्यक है। आपको बताना चाहूँगा कि वात-पित्त-कफ को समझने के बाद ही वातज-कफज , वातज-पितज , पितज-कफज और वात-पित्त-कफ ( सन्निपात )  समझ आयेगा क्योंकि यह त्रिदोष का संयुग्म है अतः इस पर लेख का विचार आपकी धारणा शक्ति व सक्रियता पर निर्भर करेगा।      *स्वस्थ्य है कौन है ...?* स्वास्थ्य तीन आयामों पर निर्भर करता है ।  १. *शारिरिक स्वास्थ्य लाभ* २. *मानसिक स्वास्थ्य लाभ* ३. *अध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ*        जो तीनो प्रकार से स्वस्थ्य है वही सुखी है, जो सुखी है वही धर्मयुक्त भी है। अक्सर तीसरे स्वास्थ्य लाभ को लोग आर्थिक स्वास्थ्य लाभ से भी जोड़ते हैं। जैसे सबसे बड़ा अर्थ - संतान सुख

गर्भावस्था और खान-पान

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🏵 *आपन्नसत्वा के आहार* 🏵 गर्भवस्था में जागरूक महिलाओं को प्रतिमाह शिशु गर्भ के अनुसार खानपान का ध्यान रखना होता है।  *वीरप्रसविनी –* वीर पुत्र को जन्म देने वाली *बुधप्रसविनी –* विद्वान् को जन्म देने वाली *गर्भाधान के समय आहार :-*  *मधुमन्मे निष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम्।* *वाचा वदामि मधुमद् ‘भूयासं’ मधुसंदृशः॥* ( मेरा जाना मधुर हो, मेरा आना मधुर हो। मैं मधुर वाणी बोलूँ, मैं मधु के सदृश हो जाऊँ। - अथर्ववेद जो माताएं गर्भाधान के समय अपने खानपान का संतुलन बनाये रखती है निश्चित ही वह अपने मामत्व का सिंचन कर रही होती है, चूँकि बच्चे का आहार भी उसकी कामलनाभि से जुड़ा होता है, अतः माता को वही सात्विक आहार लेना जिससे बच्चे का शारीरिक व प्रज्ञा का विकास होने के साथ साथ उनका प्रसव सुख-पूर्वक हो।  तेजस्वी संतान प्राप्ति के लिए जरूरी है कि माँ गर्भावस्था के दौरान अपनी मानसिक स्थति को प्रसन्नचित्त रखें , वाणी को संयमित करें तथा अपना आचरण व कर्म शुद्ध व सात्विक रखें।     दो शब्द है - आहार और विहार दोनों का तात्पर्य अलग है अतः पहले आहार पर बात करूँगा।    *आहार -*   गर्भवती माँ-बहनों को अपन

चीन और कोरोना वायरस एवम पँचतत्व (भारत की वैदिक यज्ञ परम्परा)

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🏵️  चीन और कोरोना वायरस एवम भारत की वैदिक यज्ञ परंपरा।। 🏵️                --- कोरोना वायरस के कारणों पर शोध से चीन ने जो निष्कर्ष निकाले हैं वे परोक्ष रूप में भारतीय वैदिक संस्कृति का अनुमोदन करते हैं। जो कि इस प्रकार है:- 💐 हमारे प्राचीन ऋषियों ने वेदों के आधार पर शवों को अग्नि में जलाकर दाह संस्कार करने का विधान बनाया था। चीन ने घोषणा की है कि अगर शवों को जमीन में गाड़ देंगे, तो उनके शरीर में जो कोरोना वायरस या अन्य वायरस व बैक्टीरिया होते हैं वो जमीन में मिल जाएंगे और ये वायरस और बैक्टीरिया कभी नष्ट नहीं होंगे, बल्कि जमीन में ही फैलेंगे और जल तथा वायु को प्रदुषित करेंगे। शवों को जला देने से आग के जरिये वायरस और बैक्टीरिया सदा सदा के लिए ख़त्म हो जाते हैं। इसीलिए चीन ने घोषणा की है कि जितने भी लोग कोरोना वायरस से पीड़ित होकर मर रहे हैं, उन सभी का अंतिम संस्कार जलाकर ही किया जायेगा। 💐 वेद और वैदिक सहित्य में शाकाहार को ही मनुष्य का भोजन कहा गया है। मांसाहार रोगों को बढ़ाने वाला और महापाप की श्रेणी में आता है।जिसका सेवन स्पष्ट रूप में वर्जित है। मांसाहार कितना खतरनाक होत

होली के फायदे , होली के रँग प्रकृति के संग

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🏵 *पंचतत्व आरोग्यम सेवा संस्थान द्वारा होली की हार्दिक शुभ कामनायें*🏵    मिट्टी गोबर से होली खेलने का अपना एक अलग ही आनन्द था, एक महीने पहले से ही गाँव की गलियां बंद हो जाती थी, लोगो छतों पर, खंभों के पीछे बाल्टियां भर भर के रखते थे, हम किसी ना किसी बहाने किसी को बुलाकर लाते और औरतें पूरी पूरी बाल्टी उन पर उड़ेल देती थी, पूरी गली कनई से भर जाती थी, कई लोगों के पैर फिसल जाते थे और उसमें वो गिर पड़ते थे, और हम खूब हँसते थे...  गाँव से दूर तालाबों से एक महीने पहले ही भर भर के मिट्टी के ढेले लाकर रख देते थे, पर आज यह मिट्टी लुप्त हो गयी और इसकी जगह सिर्फ कृतिम रसायनिक सूखे अबीर - गुलाल ने ले लिया। जब से शहर में आया यहां की होली में वह उमंग खो गयी। कई लोग बच्चों के साथ किवाड़ बंद करके निःस्वास पलायन कर छत की मुंडेर पर बैठ जाते है... इतना ही नहीं कई लोगों को तो यह त्योहार इतना बुरा लगता है कि कोई बच्चा उनके ऊपर पानी या रंग डाल दे तो उसको काटने को दौड़ पड़ते है ..... ऐसे लोगों के कारण ही त्योहारों की संजीदगी खत्म होती जा रही है ..... जबकि इन्ही बच्चों से ही आज हमारे त्योहारों में एक

पँचतत्व चिकित्सा और नाड़ी विज्ञान

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पँचतत्व चिकित्सा और नाड़ी विज्ञान सनातन सँस्कृति, वैदिक परम्परा में मानव शरीर में साढ़े तीन लाख नाड़ियों के बारे में बड़ी ही सूक्ष्मता से वर्णित है। जिनमें से 72000 नाड़ियाँ कान में व नाभि से सीधे तौर पर जुड़ी हैं। तत्वदर्शियों (योगियों) के अनुसार, "पँचतत्व चिकित्सा  के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। पँचतत्व  चिकित्सा के दृष्टिकोण से नाड़ियाँ शरीर में उर्जाचक्र का समन्वय करती हैं, जिसे हम नाड़ी चक्र भी कह सकते हैं।" यह नाड़ियाँ शरीर मे कुछ इस प्रकार आपस में जुड़ी हुई व फैली हुई हैं, जैसे पृथ्वी पर लाखों जल स्त्रोत, जैसे झील,नदी, तालाब व महासागर। जो आपस में अलग होकर भी समानः रूप से जल स्रोत ही हैं, और आपस में एक दूसरे के पूरक भी। जिसे हम शरीर में 108 तरीको से विभाजित करके आराम से समझ सकते हैं, किन्तु इसके लिए व्यक्ति विशेष को तत्वदर्शी (योगी व समाधि) होना होगा, जिसने अपना आत्मसाक्षात्कार कर लिया, वह योगी (तत्वदर्शी) इसे और भी सूक्ष्मता से 112 या 114 प्रकार से समझ सकता है। पर यदि हम साधारणतः पहले कुँडलिनी के 7 चक्र व 14 मुख्य नाड़ियां