गर्भावस्था और खान-पान
🏵 *आपन्नसत्वा के आहार* 🏵
गर्भवस्था में जागरूक महिलाओं को प्रतिमाह शिशु गर्भ के अनुसार खानपान का ध्यान रखना होता है।
*वीरप्रसविनी –* वीर पुत्र को जन्म देने वाली
*बुधप्रसविनी –* विद्वान् को जन्म देने वाली
*गर्भाधान के समय आहार :-*
*मधुमन्मे निष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम्।*
*वाचा वदामि मधुमद् ‘भूयासं’ मधुसंदृशः॥*
( मेरा जाना मधुर हो, मेरा आना मधुर हो। मैं मधुर वाणी बोलूँ, मैं मधु के सदृश हो जाऊँ। - अथर्ववेद
जो माताएं गर्भाधान के समय अपने खानपान का संतुलन बनाये रखती है निश्चित ही वह अपने मामत्व का सिंचन कर रही होती है, चूँकि बच्चे का आहार भी उसकी कामलनाभि से जुड़ा होता है, अतः माता को वही सात्विक आहार लेना जिससे बच्चे का शारीरिक व प्रज्ञा का विकास होने के साथ साथ उनका प्रसव सुख-पूर्वक हो।
तेजस्वी संतान प्राप्ति के लिए जरूरी है कि माँ गर्भावस्था के दौरान अपनी मानसिक स्थति को प्रसन्नचित्त रखें , वाणी को संयमित करें तथा अपना आचरण व कर्म शुद्ध व सात्विक रखें।
दो शब्द है - आहार और विहार दोनों का तात्पर्य अलग है अतः पहले आहार पर बात करूँगा।
*आहार -* गर्भवती माँ-बहनों को अपनी प्रवृति अनुसार रुचिकर, स्निग्न्ध, हल्का, सुपाच्य, अधिक हिस्सा मधुर और अग्निदीपक ( सोंठ, पीपल, काली मिर्च, अजवाइन आदि युक्त ) द्रव्यों के संयोग से बना भोजन करना चाहिए। जो चबाने में कष्टकारी ना हो। चरक-सुश्रुत में गर्भिणी को मीठे पदार्थ खाने की सम्मति दी गई है। जैसे - दूध, घी, मक्खन, चावल, जौ, गेहूँ , मूंग, आदि।
शब्जी - खीरा, नारियल, पपीता, कसेरू, पके टमाटर, लौकी, कुम्हड़ा, साग मौसमी शब्जियाँ आदि।
*विहार :-* सुश्रुत में कहा गया है कि रजस्वला स्त्री को हमेशा अपने शयन कक्ष में ऐसे चित्र रखना चाहिए जिस प्रकार वह अपने संतान को बनाना चाहती है । गर्भावस्था में सेहतमंद रहने के लिए उचित आहार लेना बेहद जरूरी होता है। सही आहार से महिला का स्वास्थ्य तो अच्छा रहता ही है साथ ही साथ गर्भस्थ्य शिशु का भी शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से होता है। गर्भावस्था में क्या खायें और क्या ना खायें यह जानना जानना जरूरी है । घर-परिवार की बुजुर्ग महिलाएं अपने अनुभव के आधार पर यह राय देती रहती हैं।
👉🏼 गर्भिणी स्त्री को ज्यादा वातकारक चीजें नहीं खानी चाहिए अन्यथा बच्चों में जड़ता, बहरापन, गूंगापन, कूबड़ापन, अपंगता आदि विकार उत्पन्न होते हैं।
फल :- किसमिस, खजूर, मौसमी फल आदि।
*ना करें :-* १. ज्यादा श्रम वाले कार्य जिससे थकान हो। २. सम्भोग ना करें। ३. शरीर के वेग ( मल-मूत्र ) को ना रोकें । ४. तेज गति से ना चलें। बोझ ना उठायें। कूद-फांद, बहुत टेढ़ा-मेढ़ा होना। ५. तीव्रगामी सवारियां ना करें। ६. दिन में कदापि ना सोयें। ७. हमेशा चित्त होकर सोना, उकडू बैठना, सीढियाँ चढ़ना, अँधेरे में घूमना, डरावना दृश्य देखना, किसी दूसरे स्त्री के प्रसव में जाना, अकेले घूमना। ८. मांसाहार त्याग दें, बासी आहार ना लें। आहार विशेषज्ञ की सलाह से अपनी खानपान की आदतों में सुधार लाएँ।
*गर्भावस्था में सब्जियों और फलों से परहेज* *पपीता -* पपीता रज को क्षीण करता है और रज के आवरण में ही शुक्र का पोषण होता है। पपीता खाने से प्रसव जल्दी होने की संभावना बनती है। पपीता, विशेष रूप से अपरिपक्व और अर्द्ध परिपक्व लेटेक्स जो गर्भाशय के संकुचन को ट्रिगर करने के लिए जाना जाता है को बढ़ावा देता है। गर्भावस्था के तीसरे और अंतिम तिमाही के दौरान पका हुआ पपीता खाना अच्छा होता हैं। पके हुए पपीते में विटामिन सी और अन्य पौष्टिक तत्वों की प्रचुरता होती है, जो गर्भावस्था के शुरूआती लक्षणों जैसे कब्ज को रोकने में मदद करता है। शहद और दूध के साथ मिश्रित पपीता गर्भवती महिलाओं के लिए और विशेष रूप से स्तनपान करा रही महिलाओं के लिए एक उत्कृष्ट टॉनिक होता है। *अनानस से बचें* गर्भावस्था के दौरान अनानस खाना गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। अनानास में प्रचुर मात्रा में ब्रोमेलिन पाया जाता है, जो गर्भाशय ग्रीवा की नरमी का कारण बन सकती हैं, जिसके कारण जल्दी प्रसव होने की सभांवना बढ़ जाती है। हालांकि एक गर्भवती महिला अगर दस्त होने पर थोड़ी मात्रा में अनानास का रस पीती है तो इससे उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। वैसे पहली तिमाही के दौरान इसका सेवन ना करना ही सही रहेगा, इससे किसी भी प्रकार के गर्भाशय के अप्रत्याशित घटना से बचा जा सकता है। *अंगूर से बचें* डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को उसके गर्भवस्था के अंतिम तिमाही में अंगूर खाने से मना करते है, क्योंकि इसकी तासीर गरम होती है। इसलिए बहुत ज्यादा अंगूर खाने से असमय प्रसव हो सकता हैं। कोशिश करें कि गर्भावस्था के दौरान अंगूर ना खाए। गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह होती है कि वो कच्चा या पाश्चरीकृत नहीं की हुई सब्जी और फल ना खाए। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि आप जो भी खाए वो अच्छे से धुला हुआ और साफ हो। यह गर्भावस्था के दौरान आपको संक्रमण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है। फलों और सब्जियों को गर्भावस्था आहार का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इसलिए जमकर खायें, लेकिन साथ ही इन कुछ बातों का ध्यान भी जरूर रखें, और गर्भवस्था के जटिलओं से बची रहें।
🌹 *खानपान का ध्यान* 🌹
*गर्भवर्ती महिलाओं के लिये देशी गाय का दूध सर्वोत्तम आहार है ।* *गर्भ धारण के बाद ब्रहचर्य का पालन अवश्य करें ।* सत्साहित्य का श्रवण एवं अध्ययन, सत्पुरुषों, आश्रमों एवं देवमंदिरों के दर्शन करना चाहिए एवं मन प्रफुल्लित रहे, ऐसी सत्प्रवृत्तियों में रत रहना चाहिए। - गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन एक ग्राम की मात्रा में घर का बनाया हुआ चूना अवश्य खाना चाहिए जिससे कैल्शियम की कमी ना हो । चूना कैल्शियम ही नहीं आपके शिशु के लिए जीवन और सौन्दर्य की भी औषधि है।
1⃣ गर्भधारण के पश्चात प्रथम माह में सुवह - शाम सुपाच्य अन्न ( दूध -भात आदि ) तथा पूरे दिन में सुबह - शाम कई बार में कम से कम एक लीटर ठंडा दूध अवश्य पीना चाहिए । पर सर्दियों में इसे थोडा गुनगुना करें।
2⃣ दूसरे मास में मधुर औषधि जैसे कि जीवंति, मुलहठी, मेदा, महामेदा, सालम, मुसलीकंद आदि से संस्कारित सिद्ध दूध योग्य मात्रा में पियें तथा आहार हितकर एवं सुपाच्य लें।
3⃣ तीसरे माह से शहद और घी को विषम मात्रा में मिलाकर दूध का सेवन करना चाहिए। अर्थात दोनों की मात्रा असमान हो यानि घी 20 ग्राम तो मधु 10 ग्राम या 1 और तीन का अनुपात हो तथा सुपाच्य आहार लें।
4⃣ चौथे माह से दूध में एक तोला मलाई मक्खन डालकर पिलायें या जरूरत होने पर घी को दूध में डालकर पिलायें व सुपाच्य अन्न लेना चाहिए। 5⃣ पांचवे माह से ढूध में देशी गाय का घी मिलाकर व घी के साथ ही भोजन करें। 6⃣ छठे व सातवें माह में गोखरू को घी के साथ पकाकर उपयुक्त मात्रा में पीना चाहिए व माह दो की तरह औषधि युक्त दूध का सेवन करना चाहिए।
7⃣ सातवें महीने के बाद घी से बोंटी के चारों तरफ घी की मालिश करना चाहिए, जिससे बच्चे को स्तनपान में आसानी हो जाये। *आगरा एक केस दो वर्ष पूर्व आया था, प्रसव के महिला के बोटी अंदर होने से वह बच्चे को दूध नहीं पिला पायी थी।*
** चरक संहिता में कहा गया है कि *सातवें महीने -* में पेट की चमड़ी फट जाती है और शरीर पर खुजली शुरू हो जाती है इसलिए बेर के क्वाथ और शतावरी, विदारीकन्द आदि को मक्खन में पकाकर 20 ग्राम ( दो तोला ) गर्भवती को पिलाना चाहिए, तथा पेट व छाती पर चन्दन का लेप लगाना चाहिए या कवरी वृक्ष के पत्तों को तिल के तेल में पकाकर शरीर पर मालिश करना चाहिए।
- यदि शरीर ज्यादा फट जाए या ज्यादा खुजली हो तो मालती पुष्प और मुलहटी को जल में पकाकर शरीर को जल से धोना चाहिए।
8⃣ आठवें माह से जौ ( बारली ) और साबूदाने और घी मिलाकर देना चाहिए। या आठवें एवं नवें मास में चावल को दूध में पकाकर, घी डालकर सुबह-शाम दो वक्त खिलायें।
- गर्भणी की मल शुद्धि व वायु की सरलता के लिए दूध के शतावरी देना चाहिए यदि आवश्यक हो तो इसके साथ ही शतावरी, विदारीकन्द, गोखरू आदि को तिल के तेल में पकाकर पिचकारी भी दी जा सकती है।
*गर्भणी के लिये उपवास वर्जित है ।* वात नाशक तेलों से कमर व जंघा की मालिश करनी चाहिए । गर्भणी का पेट साफ़ रहे और पेशाब सरलता से 5-6 बार आता रहे इसके लिए पके पपीते, टमाटर, खीरा, संतरा, सेब, अंजीर हरी साग-शब्जी, मौसमी फल देते रहें इससे पेट साफ़ होगा और खून बनेगा।
*5-6 बार से कम पेशाब आने पर दूध के साथ बराबर मात्रा में जल पीना चाहिए।* - गर्भणी को अधिक मात्रा में भारी भोजन, तैलीय भोजन, अधिक मसाले, लाल मिर्च और ज्यादा गर्म चीजें नहीं खानी चाहिए। संध्या का भोजन सात बजे तक कर लेना चाहिए। चाय ना पियें। कोयला, ठीकरी, मिट्टी आदि ना खाएं अन्यथा बच्चे रोगी, रतौंधी के रोगी, नेत्र रोगी होंगें।
*गर्भ के *आठवें माह -* में ओज का स्थान्तरण होता है, जिसमें ओज होता है वह प्रसन्न होता है, इसलिए कभी माँ प्रसन्न होती है तो कभी बच्चा। *इसलिए आठवाँ माह खतरनाक होता है, बात उलट जाये तो स्नेहन देना चाहिए अन्यथा माँ या बच्चा या दोनो के जीवन को खतरा हो सकता है।
9⃣ नवें महीने में उसी तेल का रूई का फाहा गुप्तांग में रखना चाहिए।
👉🏼श रीर में रक्त बनाने के लिए प्राणियों के खून से बनी ऐलोपैथिक कैप्सूल अथवा सिरप लेने के स्थान पर सुवर्ण-मालती, रजत-मालती एवं च्यवनप्राश का रोज सेवन करना चाहिए एवं दशमूल का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
लेख के लिए सादर आभार
प्रमोद मिश्र ( आयुर्वेद व पंचतत्व)
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🌹 *भारतीय नारी संजीवनी* 🌹
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