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पँचतत्व और अध्यात्म, योग

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पँचतत्व और अध्यात्म, योग पँचतत्व चक्र भौतिक और पराभौतिक दोनों ही चक्रों में अलग अलग चक्र चलता है, जब विषय योग और अध्यात्म का है, तो योगी सभी प्रकार की नकारात्मकता मोह - माया को त्याग कर योग और साधना करता है, तो पँचतत्व का चक्र प्रकृति प्रदत्त स्वरूप में चलता है, किन्तु वही पँचतत्व यदि रोगी के रोग नाशक के रूप में पँचतत्व चिकित्सा के लिए उपयोग होगा, तो वह भौतिक स्वरूप में उपयोग किया जाता है, जिसका चक्र स्वरूप अलग हो जाता है, जिसकी चर्चा आगामी लेख पँचतत्व चिकित्सा के स्वरूप नामक लेख में करूँगा। तो आज मैं जिस स्वरूप की वार्ता आप से कर रहा हूँ वह  पराभौतिक चक्र है, जो सतयुग से द्वापर तक उपयोगी था जब लोगों में आकाश तत्व की बहुलता थी, यही चक्र आज भी योगी और सतोगुणी जनमानस व साधको में आज भी कार्य करता है, जोकि निम्न प्रकार कार्य करता है : आत्मिक कलाओं की साधना गायत्री-योग के अन्तर्गत ग्रन्थि-भेद द्वारा होती है। रुद्र ग्रन्थि, विष्णु ग्रन्थि और ब्रह्म ग्रन्थि के खुलने से इन तीनों ही कलाओं का साक्षात्कार साधक को होता है। पूर्वकाल में लोगों के शरीर में आकाश तत्व अधिक था। इसलिए इन्हें उन्हीं स...