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होली के फायदे , होली के रँग प्रकृति के संग

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🏵 *पंचतत्व आरोग्यम सेवा संस्थान द्वारा होली की हार्दिक शुभ कामनायें*🏵    मिट्टी गोबर से होली खेलने का अपना एक अलग ही आनन्द था, एक महीने पहले से ही गाँव की गलियां बंद हो जाती थी, लोगो छतों पर, खंभों के पीछे बाल्टियां भर भर के रखते थे, हम किसी ना किसी बहाने किसी को बुलाकर लाते और औरतें पूरी पूरी बाल्टी उन पर उड़ेल देती थी, पूरी गली कनई से भर जाती थी, कई लोगों के पैर फिसल जाते थे और उसमें वो गिर पड़ते थे, और हम खूब हँसते थे...  गाँव से दूर तालाबों से एक महीने पहले ही भर भर के मिट्टी के ढेले लाकर रख देते थे, पर आज यह मिट्टी लुप्त हो गयी और इसकी जगह सिर्फ कृतिम रसायनिक सूखे अबीर - गुलाल ने ले लिया। जब से शहर में आया यहां की होली में वह उमंग खो गयी। कई लोग बच्चों के साथ किवाड़ बंद करके निःस्वास पलायन कर छत की मुंडेर पर बैठ जाते है... इतना ही नहीं कई लोगों को तो यह त्योहार इतना बुरा लगता है कि कोई बच्चा उनके ऊपर पानी या रंग डाल दे तो उसको काटने को दौड़ पड़ते है ..... ऐसे लोगों के कारण ही त्योहारों की संजीदगी खत्म होती जा रही है ..... जबकि इन्ही बच्चों से ही आज हमारे त्...