पँचतत्व और सनातन संस्कृति

🕉 पँचतत्व और सनातन संस्कृति🕉 सूक्ष्म से विराट की यात्रा सृष्टि की उत्पत्ति निर्गुण ब्रह्म से सगुण ब्रह्म की यात्रा है, दुनिया के अधिकांश सम्प्रदाय निर्गुण शब्द का अर्थ ईश्वर को गुण विहीन मानते हैं। लेकिन यदि हम अवतारों की बात करे तो ईश्वर सगुण यानि जिसके भीतर सारे गुण विद्यमान है, के रूप में अवतरित होता है। यदि ब्रह्म गुणविहीन है तो सगुण ब्रह्म में गुण कहा से आएंगे। इस् गूढ़ विषय को जानने के तत्व ज्ञान (पँचतत्व), चौदह ब्रह्म, परा, अपरा, खानियाँ, अर्थात् त्रिविधा प्रकृति को समझने की आवश्यकता है। तत्व ज्ञान पर चर्चा आगामी लेख में करेंगें, अन्यथा विषय से भटक जाएंगे। सगुण ब्रह्म अपनी जितनी कलाओं से युक्त होकर अवतरित होता है, उतना ही गुणवान और ऐश्वर्ययुक्त होता है। जहाँ कोई गुण शेष रह जाता है, वहीं अवगुण दिखता, क्योंकि जिस प्रकार प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार है, उसी तरह जहाँ गुण नहीं वहीं दोष है। पर आजकल कुछ मूर्ख ईश्वर में भी दोष (गुणहीन) देख लेते है, लगता है वो ईश्वर से अधिक गुणवान है। जिसमें को...