दिनचर्या भाग 1 : स्वस्थ्य कौन है?

🌅  *दिनचर्या भाग एक*  🌅


    
   होली बीत चुकी है आप सब के लिए होली के विभिन्न रंगों के प्रयोग व लाभ पर भी होली पूर्व लेख दिया था, जिज्ञासु लोगों ने इसका लाभ उठाया। अब दिनचर्या की प्रतिक्रिया शुरू करेंगे। 

🏵️ *दिनचर्या का भाग* 🏵️

     स्वस्थ्य दिनचर्या हमारे जीवन का बेहद जरूरी आयाम है। स्वास्थय से ही जुड़ा हुआ हमारा त्रिदोष है इस विषय व्यापक चर्चा की जाये उसके पूर्व आपको अपनी दिन-चर्या का ज्ञान होना वेहद आवश्यक है। आपको बताना चाहूँगा कि वात-पित्त-कफ को समझने के बाद ही वातज-कफज , वातज-पितज , पितज-कफज और वात-पित्त-कफ ( सन्निपात )  समझ आयेगा क्योंकि यह त्रिदोष का संयुग्म है अतः इस पर लेख का विचार आपकी धारणा शक्ति व सक्रियता पर निर्भर करेगा।

     *स्वस्थ्य है कौन है ...?*

स्वास्थ्य तीन आयामों पर निर्भर करता है । 
१. *शारिरिक स्वास्थ्य लाभ*
२. *मानसिक स्वास्थ्य लाभ*
३. *अध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ*

       जो तीनो प्रकार से स्वस्थ्य है वही सुखी है, जो सुखी है वही धर्मयुक्त भी है। अक्सर तीसरे स्वास्थ्य लाभ को लोग आर्थिक स्वास्थ्य लाभ से भी जोड़ते हैं। जैसे सबसे बड़ा अर्थ - संतान सुख या अर्थ सुख है। पर हम यहाँ तीसरे सुख को आत्मसुख से देखेंगे। क्योंकि शरीर स्वास्थ्य के लिए आत्मा का सुख बहुत आवश्यक है, जिस व्यक्ति की दिनचर्या सुदृढ है उसका आत्मिक सुख उन्नत है। क्योंकि कष्ट शरीर को होता है लेकिन पीड़ा सूक्ष्मिन्द्रियों को भी होती है। जब व्यक्ति रुग्ण होता है तो सबसे पहले उसके मन में भय उत्पन्न होता है, उस भय को खत्म करने के लिए लोग सांत्वना देते है, जिससे उसका भय खत्म होता है। 
    कोई छोटा बच्चा खेलते वक्त गिर जाता है तो वह मात्र माँके फूँक मारने से शांत हो जाता है, उसकी पीड़ा कम हो जाती है, यह है मानसिक भय से मुक्ति। 
  व्यक्ति के 10 घंटो में से उसके कार्य व ड्यूटी के निकाल दें, तो 6 से 7 घंटे सोने का तो उसके शेष बचे समय में उसका स्वास्थ्य, दिन-चर्या, घर-परिवार के लिए समय, स्वाध्याय, सामाजिक गतिविधियां आदि विषयों हेतु यह समय बेहद कम है। लेकिन स्वस्थ्य व्यक्ति कभी भी समय की शिकायत नहीं करता है। 

🌹 *दिनचर्या की शुरुआत* 🌹

*ब्राह्यमें मुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुष:*  ,
*शरीरचिन्तां निर्वत्यं कृतशौचविधिस्तव:* ॥
   
अर्थात् :- स्वस्थ्य व्यक्ति को अपनी आयु रक्षा हेतु ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए।
शारीरिक चिंता को भगवान् का स्मरण करते हुए त्याग देना चाहिए। इसके बाद मल-मूत्र त्याग करने के लिए शौच जाना चाहिए।

👉🏼 *ब्रह्म मुहूर्त में उठने के दो कारण है, पहला कारण है हमारे शरीर का अंग फेफड़ा प्रातः 3 से 5 बजे सबसे अधिक सक्रिय रहता है, और 5 से 7 बजे तक बड़ी आँत सक्रिय रहती है, अगर मल का त्याग इस् समय ना किया जाए तो आँतो का रस सूखने लगता है, और बीमारियों का कारण बन जाता है। दूसरा कारण है भौगौलिक परिस्थतियां व ग्रहों की दशा।*
 
यहाँ प्रश्न आता है क्या आप ब्रह्म-मुहूर्त में उठते हैं ..? ब्रह्म मुहूर्त में क्यों उठना चाहिए, उसके क्या -क्या फायदे हैं, इस बात को आज की युवा पीढ़ी को भी सीखनी पड़ेगी। 

👉🏼 ब्रह्म मुहूर्त में वही लोग उठ सकते हैं जिनकी नींद 7 घंटे की हो चुकी हो यह स्वास्थ्य का नियम है।

 👉🏼 *महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा एक से दो घंटे अधिक सोना चाहिये ।*

  *विस्तर छोड़ने से पूर्व निम्न बातों का स्मरण अवश्य रखे।*

- सुबह बायीं करवट लेकर उठें *कभी भी सीधे मत उठें,* या जिधर की नासिका चल रही है उस करवट लेकर उठें । (स्वर विज्ञान में बताया गया है कि किस पक्ष में किस तिथि को हमारा कौन सा स्वर चलना चाहिए, इस पर कई बार आपको लेख भी दे चुका हूँ कि आप अपनी दिनचर्या की शुरुवात के पहले पक्ष व तिथि के अनुसार अपना स्वर बदलना सीख लें। )
उठने के बाद अपना मुँह पूर्व दिशा की तरफ हो (सूर्योदय जो इस पृथ्वी का ऊर्जा स्रोत्र है) और अपने सामने दोनों हाथों की हथेलियों को सामने रखकर यह मन्त्र बोलें :-

" *कराग्रे बसते लक्ष्मी , करमूले सरस्वती*
*कर मध्ये गोविन्दः प्रभात कर दर्शनं*

सुबह-सुबह ईश्वर को धन्यवाद करें ! कि आपको एक और अच्छा दिन कार्य करने के लिए मिला है, आज हम ऐसा कार्य करेंगे जिससे परिवार को, समाज को, मित्र कुटुम्बियों को आनंद देंगे।

*हे ईश्वर ! तू बहुत कृपालु है आपने जो मुझ मानव को तन दिया है, आपके कृति की सबसे सुन्दर प्रतिभा मैं हूँ, मेरे अन्दर सत्वगुण आपके कारण है। आपका स्नेह मै हूँ, मेरे चारों तरफ आपकी ही उर्जा मंडल है। इस जगत की सारी शक्तियों के श्रोत आप ही हैं, ऐसा भाव भरते हुए ईश्वर का धन्यवाद करें, और दोनों हाथो को आपस में रगड़कर चहरे व आँखों को स्पर्श करें। तत्पश्चात जमीन पर बिना पैर नीचे लटकाए धरती माँ को प्रणाम करें।*

👉🏼 पृथ्वी पर कदम नीचे रखने से पूर्व क्षमा प्रार्थना करते हुए भूमि वंदना हेतु निम्नलिखित श्लोक पढ़े व धरती माँ को प्रणाम करे।

*समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते*

*विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव* ||

तत्पश्चात सबसे पहले आप अपने लार से अपने आँखों में काजल लगाएं। जहाँ -जहाँ दाद, एक्जिमा या त्वचा रोग है वहां-वहां बासी लार लगायें। 
👉🏼 *ध्यान रखें :-*
(इस सृष्टि के समस्त जानवर जीभ से चाट-चाटकर अपने जख्म व त्वचा की वीमारी को ठीक कर लेते है, जिसके लिये आप डॉक्टरों को हजारों रुपये देते हैं। ) *लार ईश्वर प्रदत्त अमूल्य औषधि है।* जिन्हें कैंसर हो जाता है उन्हें लार नहीं बनती है तब वो विदेशों से 10 हजार रुपये में 10 ml लार खरीदते है, आप उनसे पूँछिये कि लार की कीमत क्या होती है ? ?

- लार का काजल लगाते समय एक अंगुली से एक आँख में तथा दूसरी अंगुली में दूसरे आँख में काजल लगाएं। इससे आँखों के अनेक रोंगों का शमन होगा जैसे - आँखों में लाली, रोशनी की कमी, ( चश्मे उतर जायेंगे ) कंजक्टविटी, आँखों का भेंगापन, आँखों से पानी आना आदि।

👉🏼 मोबाइल व कम्प्यूटर वाले आँख ठीक होने की विशेष आशा ना करें।

     आपके प्रार्थना भाव ही ईश्वर का स्नेह है, इसलिए आपने हृदय के पुष्प ईश्वर को अर्पण करके ही अपने विस्तर का त्याग करना चाहिए।

       दिनचर्या भाग 1⃣
प्रमोद मिश्र (आयुर्वेद व पंचतत्व)
      ..... शेष कल 
🌹 *पंचतत्व आरोग्यम् सेवा संस्थान* 🌹

टिप्पणियाँ

  1. श्रीमन्त ! कम्प्यूटर पर कार्य करनेवाले अपनी दृष्टि को ठीक कैसे रख सकते हैं ?

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