पायरिया व दाँत सुरक्षा

 🏵 *पायरिया व दाँत सुरक्षा* 🏵


*बदर्या मधुरः स्वरः। उदुम्बरे च वाकसिद्धि:।*
*अपामार्गे स्मृतिमेधा। निम्बेश्व तिक्तके श्रेष्ठ:।*

*बेर* के दातुन से स्वर मधुर होता है। *गूलर* के दातुन से वाणी अच्छी रहती है, *अपामार्ग* के दातुन से स्मरण शक्ति और बुद्धि बढती  है *नीम* के दातुन दन्त रोग में श्रेष्ठ हैऔर *बबूल* से दांत मजबूत होते है।

👉🏼 सुषुत्र के अनुसार सुबह जो मुँह का स्वाद हो उसके विपरीति स्वाद की दातुन करें। जैसे वायु के कारण मुख का स्वाद प्रातः कषाय हो जाता है तो मधुर, अम्ल युक्त, पित्त के कारण प्रातः मुख कटु हो जाता है उन्हें तिक्त, कषाय, मधुर दातुन करना चाहिए। कफ के कारण प्रातः मधुर स्वाद हो जाता है उन्हें कटु, तिक्त, कषाय दातुन का सेवन करना चाहिए।

👉🏼 *अजीर्ण, वमन, श्वास - कास, ज्वर, अर्दित, प्यासा, मुख के छाले, शिर व कर्ण रोगी को दातुन नहीं करना चाहिए।


पित्त के कारण दाँत में सड़न, बदबू उत्पन्न उत्पन्न होता है। पायरिया में वात व पित्त दोनो जिम्मेदार है, यदि पस बनता है तो कफ भी जिम्मेदार है। पित्त के कारण पहले इंफेक्शन, वायु व पित्त के कारण घाव, सड़न व बदबू तथा कफ के कारण पीब बनता है।

🏵 *पायरिया व दाँत सुरक्षा* 🏵

   दाँतों का प्रचलित रोग पायरिया दाँतों के आसपास की मांसपेशियों को संक्रमित करके उन्हें हानि पहुँचाती है। दाँतों से ही जुड़ी यह समस्या सर्फ दाँतों तक सीमित नहीं अपितु हमारी खराब दिनचर्या, दाँतों की ठीक से सफाई ना करना व मसूड़ों पर निर्मित जीवाणुओं के कारण होती है। पायरिया के कारण मुँह से बदबू, मसूड़ों में खून, खराब दाँत आदि समस्यायें दिखायी पड़ती है। पायरिया के कारण ठंडा पानी ही नहीं अपितु ठंडी हवा भी रोंगटे खड़ा कर देता है। 

*पायरिया के आयुर्वेदिक उपचार:*
1. नीम के साफ पत्ते छाया में सुखाकर बर्तन में ढककर भस्म बना लें कपड़छान भस्म में चुटकी भर सादा नमक, खस, इलाइची, लौंग,  हल्दी सरसों का तेल मिला प्रतिदिन 20 मिनट तक मंजन करे। साथ में *त्रिफला गुग्गल की 1 से 3 दिन में तीन बार लें और रात में 1 से 3 ग्राम त्रिफला का सेवन करें।*
2. कच्चे अमरुद खाये में थोड़ी काली मिर्च व नमक मिलाकर खाये।
3. 200 Ml अरण्ड तेल, 5 ग्राम देशी कपूर, 100 Ml शहद के मिश्रण को नीम के दातुन में डुबोकर दाँतों पर मालिश करे।
4.  जीरा, सेंधा नमक, हरड़, दालचीनी, दक्षिणी सुपारी,  को समान मात्रा में लें, इसे बंद बर्तन में जलाकर पीस लें,(जो तम्बाकू खाने वाले है वह थोड़ी सादी तम्बाकू), भूनी फिटकरी इसमें मिलाकर मंजन बना लें व नियमित प्रयोग करें।
*मुँह की दुर्गंध:-*

अनार के छिलके, एक चुटकी नमक, भुने बादाम छिलके, लौंग, कत्था, पान,  खूब खौला कर ठंडा कर लें । इस पानी से दिन मे तीन चार बार कुल्ले करें। इससे मुंह की बदबू से बहुत जल्द छुटकारा मिल जाएगा।
*दर्शना संस्कार चूर्ण :-* पायरिया के उपचार के लिए एक बहुत ही प्रचलित औषधि है। यह पाउडर मसूड़ों से रक्तस्राव और पस के निर्माण पर नियंत्रण रखता है, और मुँह से दुर्गन्ध हटाने में भी सहायता करता है।

*आयुर्वेदिक औषधि:-*
गंधक रसायन ५ ग्राम + आरोग्यवर्धिनी बटी ५ ग्राम + कसीस भस्म ५ ग्राम + शुभ्रा (फिटकरी) भस्म ५ ग्राम + सोना गेरू १० ग्राम + त्रिफला चूर्ण २० ग्राम; इन सबको घोंट कर इक्कीस पुड़िया बना लीजिये। सुबह – दोपहर – शाम को एक-एक पुड़िया एक कप पानी में घोलकर मुँह में जितनी देर रख सकते है रखें, फिर उसे निगल लीजिये।
*पंचतत्व चिकित्सा :-*
पेट के आकाश को नियंत्रित करें।
अंगूठे पर दाँतों के प्रतिविन्दु पर काला रंग दे।
रदनक व अक्ल दाढ़ पर में दर्द पर अग्नि, कृन्तक पर जल, अग्र चर्वणक पर
आकाश, व चर्वणक पर पृथ्वी तत्व की ऊर्जा नियंत्रित करें।

🌹 *दातुन का प्रयोग*🌹
*बदर्या मधुरः स्वरः। उदुम्बरे च वाकसिद्धि:।*
*अपामार्गे स्मृतिमेधा। निम्बेश्व तिक्तके श्रेष्ठ:।*

*बेर* के दातुन से स्वर मधुर होता है। *गूलर* के दातुन से वाणी अच्छी रहती है, *अपामार्ग* के दातुन से स्मरण शक्ति और बुद्धि बढती  है *नीम* के दातुन दन्त रोग में श्रेष्ठ हैऔर *बबूल* से दांत मजबूत होते है।
👉🏼 शुश्रतु के अनुसार सुबह जो मुँह का स्वाद हो उसके विपरीति स्वाद की दातुन करें। जैसे वायु के कारण मुख का स्वाद प्रातः कषाय हो जाता है तो मधुर, अम्ल युक्त, पित्त के कारण प्रातः मुख कटु हो जाता है उन्हें तिक्त, कषाय, मधुर दातुन करना चाहिए। कफ के कारण प्रातः मधुर स्वाद हो जाता है उन्हें कटु, तिक्त, कषाय दातुन का सेवन करना चाहिए।

पित्त के कारण दाँत में सड़न, बदबू उत्पन्न उत्पन्न होता है। पायरिया में वात व पित्त दोनो जिम्मेदार है, यदि पस बनता है तो कफ भी जिम्मेदार है। पित्त के कारण पहले इंफेक्शन, वायु व पित्त के कारण घाव, सड़न व बदबू तथा कफ के कारण पीब बनता है।
👉🏼 *अजीर्ण, वमन, श्वास - कास, ज्वर, अर्दित, प्यासा, मुख के छाले, शिर व कर्ण रोगी को दातुन नहीं करना चाहिए।*

*घर पर मंजन बनाये*
त्रिफला, चाक मिट्टी, गौ - भस्म, नमक, तूतिया, मजीठ, माजूफल, भुनी फिटकरी, सुपारी भस्म, दालचीनी, सोना गेरू, सेंधा नमक, अपामार्ग, लौंग, कत्था, अखरोट छाल, मौल श्री, अजवाइन, शंख भस्म काकड़सिंघी, पीपर, नीम आदि।
उकड़ू बैठकर सुबह - शाम मंजन कीजिये पूरी जिंदगी दाँतों में कोई रोग नहीं होगा।

*दाँत और दाढ़ के दर्द की अनुभूत दवा*---

1. काकड़ासिंगी --   एक तोला
2. छोटी पीपर --     एक तोला

     दोनों को बारीक पीसकर आधा तोला खाने का सोड़ा मिलाकर रख लें। जहां दर्द हो, वहाँ मलें और नीचे को मुँह कर दें ताकि सब लार गिर जाये। उसके बाद गर्म पानी से कुल्ला कर लें। दस मिनट में दर्द मिट जायेगा।
    
*दाँत में कीड़ा लगना*

घर का बना चूना पिसी देशी फिटकरी को आपस में मिलाकर खोखली दाढ़ में भरकर मुँह नीचे लटका लें । कुछ मिनट में लार के साथ दाँत का कीड़ा बाहर आ जायेगा।
अगर किसी कारण से एक बार में कीड़ा बाहर न आये तो एक बार पुन इस प्रक्रिया को दोहरा लें !
  *अरिमेदादि तैल का फाहा*
👉🏼 ध्यान रहे कभी दांतों को कील, लकड़ी से मत कुरदें, दाँतों में गैप आने पर चिकित्सक से मिलकर फिलिंग करा लें।

प्रमोद मिश्र (आयुर्वेद पंचतत्व)
🌹 *पंचतत्व आरोग्यम् सेवा संस्थान* 🌹

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मौसम, ऋतु और पँचतत्व

मनुष्य देह के घटक कौन से हैं ?

पंचतत्व में पानी का गणित