पञ्चतत्व और पञ्चाङ्ग
🏵 *पञ्चतत्व और पञ्चाङ्ग* 🏵
*पंचतत्व दृष्टिकोण में ऋतु परिवर्तन*
आज पंचतत्व की दृष्टिकोण पर प्रकृति के ऋतु परिवर्तन पर यह लेख देने पर बेहद सुखद अनुभूति हो रही है क्योंकि यह किसी भी मनुष्य के लिए बेहद प्रेरणादायक प्रसंग है। जैसे जीवन में उम्र के अनुसार हमारी अवस्था परिवर्तन होते हैं, सुख-दुःख का क्रम चलता रहता है, जिसके कारण जीवन् में एक जीवटता घटती है। उसी प्रकार प्रकृति में ऋतुएं बदलती रहती है जिसका प्रभाव हमारे मन व शरीर दोनो पर पड़ता है।। हम इस प्राकृतिक परिवर्तनों के दौर से गुजरते है तो पाते है, इस जलवायु परिवर्तन का कालखंड एक वर्ष का होता है, जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। इस एक वर्ष के कालखंड में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के परिणाम स्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशायें एक चक्रीय रूप में बदलती हैं, जिसे कई भागों में विभक्त करता है।
*चार ऋतुयें*
आप सब जानते हैं कि ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार चार ऋतुएँ मानी जाती हैं:- बसन्त (Spring), ग्रीष्म (Summer), शरद (Autumn) और शिशिर (Winter)।
लेकिन हमारे भारतवर्ष में वैदिक काल से ही चार नहीं अपितु छः ऋतुओं का वर्णन किया गया है। ऐसा भारत वर्ष में भौतिक विविधिताओं के कारण है। हिन्दू कैलेंडर (हिन्दू पंचांग) के अनुसार भारत में छः ऋतुएँ ...
*बसन्त (Spring), ग्रीष्म (Summer), वर्षा (Rainy), शरद (Autumn), हेमन्त (Pre-winter) और शिशिर (Winter)।*
इन छः ऋतुओं में प्रत्येक ऋतु के चक्र को दो-दो माह का माना गया है।
जैसा कि मैंने पूर्व में कहा कि इन परिवर्तनों का असर हमारे मन व शरीर पर पड़ता है इसीलिए विभिन्न तामपान के अनुसार बहुत सारे उत्सवों व त्योहारों का समावेश हो पाया। इन उत्सवों व त्योहारों का हमारे जीवन के मुख्य खान पान, परिधान और उसकी ऊर्जा के संबंधों को इंगित करता है।
ऋतुएँ | हिंदी माह | ग्रेगोरियन माह | तापमान | मौसमों के त्यौहार | |
1. | वसंत (Spring) | चैत्र और वैशाख | मार्च, अप्रैल | 20-30 डिग्री सेल्सियस | बसंत पंचमी, गुडी पडवा, होली, रामनवमी, वैशाखी/ हनुमान जयंती |
2. | ग्रीष्म (Summer) | ज्येष्ठ और आषाढ | मई, जून | बहुत गर्म, 40- 50 डिग्री सेल्सियस | वट पूर्णिमा, रथ यात्रा और गुरु पूर्णिमा |
3. | वर्षा (Rainy) | सावन और भाद्रपद | जुलाई, अगस्त | गर्म, उमस और बहुत ज्यादा वर्षा | रक्षा बंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी |
4. | शरद (Autumn) | आश्विन और कार्तिक | सितम्बर, अक्टूबर | 19-25 डिग्री सेल्सियस | नवरात्रि, विजयादशमी, शरद पूर्णिमा |
5. | हेमंत (pre-winter) | मार्गशीर्ष और पौष | नवंबर, दिसंबर | 20-15 डिग्री सेल्सियस | दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा |
6. | शिशिर (Winter) | माघ और फागुन | जनवरी, फरवरी | 10 डिग्री से काम हो सकता है. | संक्रांति, महाशिवरात्रि |
*पञ्चाङ्ग परिचर्चा?*
पंचांग या पञ्चाङ्गम् संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शब्दशः तात्पर्य है पांच अंगों से युक्त समय का ऐसा संयोग जिसमें - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण निहित है। हिन्दू कैलेंडर के माध्यम से लोगों को पक्ष, ऋतु एवं माह का तो पता चलता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार एक वर्ष के 12 माह, एक माह में दो पक्ष (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) होते हैं। जबकि एक पक्ष में 15 तिथियाँ होती हैं।
👉🏼 वैदिक पंचांग में माह और ऋतुओं के नाम अंग्रेज़ी कैलेंडर से भिन्न होते हैं।
*वैदिक कैलेंडर के अनुसार माह के नाम*
०१. चैत्र,
०२. वैशाख,
०३. ज्येष्ठ,
०४. आषाढ़,
०५. श्रावण (सावन),
०६. भाद्रपद( भादों)
०७. क्वार
०८. कार्तिक
०९. मार्गशीर्ष (अगहन)
१०. पौष
११. माघ
१२. फाल्गुन
*पंचाग - तिथि परिचर्चा*
तिथि - तिथि को बोलचाल की भाषा में तारीख़ या फिर दिनाँक कहते हैं। लेकिन काल गणना की भिन्नता के कारण इसका समय चक्र तारीख से भिन्न है। हिन्दू पंचांग में एक तिथि 19 से लेकर 24 घंटे तक हो सकती है। लेकिन अंग्रेज़ी तारीखें 24 घंटे के बाद रात्रि में परिवर्तित होती है। कई कई बार एक दिन में दो तिथियाँ भी होती हैं। परंतु इसमें सूर्योदय की तिथि को मुख्य तिथि माना जाता है।
*तिथियों के नाम (कृष्ण व शुक्ल पक्ष) -*
प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्थदशी, अमावस्या। शुक्ल पक्ष में पंचदशी तिथि को पूर्णिमा कहते हैं जबकि कृष्ण पक्ष में पंद्रवी तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
*पंचांग वार परिचर्या*
वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के समयावधि को एक वार कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में वार को दिन भी कहते हैं। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।
*पंचांग योग परिचर्या* - हिन्दू ज्योतिष के अनुसार सूर्य एवं चंद्रमा के संयोग से योग का निर्माण होता है। तकनीकी भाषा में यदि इसे समझा जाए तो सूर्य और चंद्रमा के भोगांश को जोड़कर 13 अंश 20 मिनट से भाग देने पर एक योग की अवधि प्राप्त होती है। योग का शाब्दिक अर्थ ही दो चीज़ों को जोड़ना होता है।
योग 27 प्रकार के होते हैं :-
०१. विष्कुम्भ, ०२. प्रीति, ०३. आयुष्मान, ०४. सौभाग्य, ०५. शोभन, ०६. अतिगण्ड, ०७. सुकर्मा, ०८. धृति, ०९. शूल, १०. गण्ड, ११. वृद्धि, १२. ध्रुव, १३. व्याघात, १४. हर्षण, १५. वज्र, १६. सिद्धि, १७. व्यातीपात, १८. वरीयान, १९. परिघ, २०. शिव, २१. सिद्ध, २२. साध्य, २३. शुभ, २४. शुक्ल, २५. ब्रह्म, २६. इन्द्र, २७. वैधृति
*पंचाग नक्षत्र परिचर्या* आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं :-
०१. अश्विनी, ०२. भरणी, ०३. कृतिका, ०४. रोहिणी, ०५. मृगशिरा, ०६. आर्द्रा, ०७. पुनर्वसु, ०८. पुष्य, ०९. अश्लेषा, १०. मघा, ११. पूर्वा फाल्गुनी, १२. उत्तरा फाल्गुनी, १३. हस्त, १४. चित्रा, १५. स्वाती, १६. विशाखा, १७. अनुराधा, १८. ज्येष्ठा, १९. मूल, २०. पूर्वाषाढ़ा, २१. उत्तराषाढा, २२. श्रवण, २३. धनिष्ठा, २४. शतभिषा, २५. पूर्वाभाद्रपद, २६. उत्तरभाद्रपद, २७. रेवती
*पंचांग करण परिचर्या*
तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अर्थात एक माह में कुल 60 करण होते हैं। करण को दो भागों में विभाजित किया गया है - चर और स्थिर करण।
चर करण के नाम इस प्रकार हैं - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज्य, विष्टी।
स्थिर करण के नाम इस प्रकार है - शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किंस्तुघ्न।
*हिन्दू कैलेंडर का इतिहास*
हिन्दू पंचांग में विक्रम संवत का महत्वपूर्ण स्थान है। गणना हेतु इसे सबसे सटीक कैलेंडर माना जाता है।
स्वतंत्रता प्राप्त के पश्चात नवम्बर 1952 में वैज्ञानिको और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी। समिति के 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की। *किन्तु, तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन केलेण्ड़र को ही राष्ट्रीय केलेण्ड़र के रूप में स्वीकार लिया गया।*
ग्रेगेरियन केलेण्ड़र की काल गणना मात्र दो हजार वर्षो की है जो अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 1582 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष, यहूदी 5768, मिस्त्र की 28691, पारसी 198875 तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 115 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथो में एक एक पल की गणना की गई है।
75 ईसा पूर्व महान राजा विक्रमादित्य के काल में इस कैलेंडर की शुरुआत हुई थी। इसलिए इसे विक्रम संवत कहते हैं। इस संवत के अनुसार ही 12 महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन शुरु हुआ था। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में विक्रम संवत को राष्ट्रीय कैलेण्डर घोषित किया गया है।
🌹 *पंचतत्व आरोग्यम् सेवा संस्थान* 🌹
Great post thanks
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी
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