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ब्रह्मण्ड का स्वरूप और पञ्चतत्व

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ब्रह्मण्ड का स्वरूप और पञ्चतत्व मूल रूप से हमारा ब्रह्माण्ड एक अँधेरे और ठण्डे के रूप में स्थित है। जिसमें ज्यादातर हिस्सा करीब तीन चौथाई वह है जो कभी सृष्टि में दृष्टिगोचर नहीं होता,आधुनिक विज्ञान की भाषा में कहें, तो वो डार्क एनर्जी या डार्क मैटर है। दूसरी तरफ सृष्टि में जो बाकी भाग है, वो उत्पन्न वृद्धि और प्रलय में निरंतर चलता रहता है। जिसमें स्फोट मत के सिद्धांत से ऊर्जा और प्रकाश है।  मनुष्य जिस भाग में रहता है, वो यही एक चौथाई भाग का गर्म और प्रकाशमान ब्रह्माण्ड है। इस पूरी बात का निचोड़ सामान्य बोलचाल में अक्सर एक कहावत से प्रचलन में आता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु सूचक अर्थ में उसका ठण्डा पड़ जाना कहते हैं। गर्म अर्थात् जीवन, ठण्डा अर्थात् मृत्यु  किसी मेहमान के आने पर गर्मजोशी से स्वागत करना जीवंत होने का परिचायक है। इसी प्रकार जीवन के लिऐ मनुष्य को सबसे अधिक गर्मी की आवश्यकता होती है जो कि हमें सूर्य से प्राप्त होती है।  पौधे को अपना भोजन बनाने में ९०% भाग सूर्य से १०% भाग जल से प्राप्त होता है बाकी के सुक्ष्म अवयव मिट्टी से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार मनुष्य के

पञ्चतत्व में पानी का गणित

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🏵 *पंचतत्व में पानी का गणित* 🏵 👉🏼 किडनी रोगी जरूर पढ़ें।  जिस प्रकार गणित में सवाल का उत्तर सवाल में छुपा होता है। उसी प्रकार इंसान के स्वास्थ्य का राज पांच तत्वों में छुपा है। लेकिन गणित के प्रश्नों का  हल करने के लिए सूत्र की आवश्यकता पड़ती है। उसी तरह पाँचों तत्वों को समझने के लिए सूत्र को समझना अति आवश्यक है।   यदि हम *आग और पानी* को हम सूत्र मान लेते हैं। (आग यानि जीवन् ऊर्जा, क्योंकि यह ऊर्जा हमें भोजन से मिलती है।) तो इन्ही सूत्रों से जिनके लिए इंसान मेहनत करता है, हल करने में सहायता मिल सकती है।     बाकी के तीन तत्व सूत्र (हवा, भूमि और आकाश) हमें ईश्वर ने उपहार स्वरूप दिए हैं। यह तीनों सूत्र इन दोनों सूत्रों में विलीन है। क्योंकि यदि पृथ्वी नहीं है तो जल का आधार नहीं है। यदि वायु नहीं तो आकाश नहीं जो सृष्टि का मूल तत्व है।  इसलिए हमें ज्यादा ध्यान आग और पानी पर देना होता है। बाकी वायु, भूमि, शून्य स्वतः ही संतुलित हो जाते हैं। *भोजन को ब्रह्मरूप माना गया है, इसी ब्रह्म का अस्तित्व रूप आत्मा है, आत्मा से परे चित्त है जिसे आनंदमय कोश कहा है, यह आनंद चित्त शक्ति प्रध

पँचतत्व और उनके गुणधर्म

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यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे 'यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे' -चरक संहिता का यह श्लोकांश हमें समझाता है कि जो-जो इस ब्रह्माण्ड में है वही सब हमारे शरीर में भी है।      यह भौतिक संसार पंचमहाभूतों से बना है-  आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। उसी प्रकार हमारा हमारा यह शरीर भी इन्हीं पाँचों महाभूतों से बना हुआ है। जब जीव की मृत्यु होती है तो उसके उपरान्त ये पाँचों महातत्त्व अपने-अपने तत्त्व में जाकर मिल जाते हैं।         इन पंचमहाभूतों की पंचतन्मात्राएँ हैं मनुष्य में भी ये सभी पंचतन्मात्राएँ  विद्यमान हैं-  आकाश की तन्मात्रा शब्द है। मनुष्य अपने कानों से सुनता है। वायु की तन्मात्रा स्पर्श है। मनुष्य अपने शरीर पर स्पर्श का अनुभव करता है। अग्नि की तन्मात्रा ताप है। अग्नि तत्त्व मनुष्य के शरीर में है जिससे वह भोजन पचाता है और अग्नि जैसा तेज उसके चेहरे पर रहता है। जल की तन्मात्रा रस है। मनुष्य के मुँह से निकलने वाला रस भोजन को स्वादिष्ट बनाता है और शरीर को पुष्ट करता है। पृथ्वी की तन्मात्रा गंध है। पृथ्वी में हर स्थान पर गंध बिखरी हुई है। मनुष्य अपनी घ्रा

मौसम, ऋतु और पँचतत्व

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आओ मित्रों,  आज हम समझेंगें यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे  के अनुसार जब प्रकृति प्रदत्त  मौसम / ऋतु चक्र और पँचतत्व में क्या समानता है,यह मौसम एक वर्ष की अवधि में अपने नियत समय पर परिवर्तित होता है और जब होता है, तब मन, मस्तिष्क और आचार, विचार , व्यवहार और अपने आसपास वातावरण में क्या परिवर्तन होता है।  ऋतु वर्णन- पतझड़, सावन, बसंत, बहार एक बरस के मौसम चार… पर यहां मौसम छह… ऋतुएं प्राकृतिक अवस्थाओं के अनुसार वर्ष का छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएं एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएं एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। Gregorian calendar के मुताबिक चार ऋतुएं मानी जाती हैं- वसंत (Spring), ग्रीष्म (Summer), शरद (Autumn) और शिशिर (Winter)। लेकिन भारत में चार ऋतुओं का नहीं बल्कि छह ऋतुओं वर्णन किया गया है। प्राचीन काल में यहां छह ऋतुएं मानी जाती थीं- वसंत (Spring), ग्रीष्म (Summer), वर्षा (Rainy) शरद (Autumn), हेमंत (Pre-