आओ पँचतत्व चिकित्सा जानें

⚛️ *पंचतत्व चिकित्सा क्या है?*⚛️
बचपन में आपने अपने माता - पिता गुरुजनों से कई बार सुना होगा कि किताबों में भी पढ़ा होगा कि हमारा शरीर प्रकृति के पाँच तत्वों से बना है, पर क्या माता - पिता, गुरुजनों से या उन किताबो में कभी यह ज्ञात हो सका कि जब यह प्रकृति के पाँच तत्व अव्यवस्थति होते हैं तो इसका हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसको कैसे सुव्यवस्थित करना चाहिए ? 

जरा  इस पर विचार कीजियेगा?  जैसे कोई भी शब्द या उसका विषय वस्तु क, ख, ग, घ .... आदि के संयोजन से बना है। अगर संबंधित विषय - वस्तु के यह वर्ण  अपना संयोजन बदल लें, यानि क की जगह घ हो जाये, ग की जगह ख हो जाये  तो क्या आपने जो संदेश दिया वह उसे समझ पायेगा ..??
  *जिस प्रकार इस वर्णमाला के असंयोजन से अर्थ का अनर्थ हो जाता है, उसी तरह शरीर के भीतर प्रकृति के पाँच तत्वों के असंयोजन से नाना प्रकार के रोग आ जाते हैं... आपको वाह्य वर्णमाला के संयोजन का अभ्यास है, पर आंतरिक पंचतत्व वर्णमाला के संयोजन का ज्ञान नही। ईश्वर ने आपको प्रकृति के इन पाँचो तत्वों को संयोजित करके पृथ्वी पर स्वस्थ भेजा था, लेकिन आपकी अज्ञानता व असावधानी से यह असंतुलित हो गया। यही पंचतत्व का विज्ञान है।*

   सर्वप्रथम हमे इन्हीं पाँच तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) के संयोजन को समझना है जिससे यह हमारा शरीर निर्मित हुआ। इन पाँचो तत्वों के सबके अपने गुण धर्म है, और यह एक दूसरे के पूरक व नियंत्रक भी हैं। किसी भी तत्व की कमी या अधिकता से हमारे शरीर का संयोजन को बिगाड़ जाता है, जिससे बीमार हो जाते है। 

  प्रकृति भी इन्ही पांचों तत्वों से निर्मित है, और इन्हें संतुलित करके पूरे वर्ष  विभिन्न प्रकार के जलवायु, ऋतुएं जैसे - सर्दी, गर्मी, वर्षा प्रदान करती है, जिसका सीधा प्रभाव मानव शरीर पर दिखाई देता है। जैसे -  सर्दी के मौषम में स्वभावतः हर प्राणी के शरीर में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। हेमंत ऋतु में शरीर में रुक्षता (खुजली) बढ़ जाती है। अगर यही मूत्र बढ़ने की समस्या गर्मी में हो जाये तो यह एक रोग माना जाता है। बुद्धिमान व्यक्ति अपने ज्ञान से प्रकृति के इस संयोजन को आसानी से समझ लेता हैं और सोचता है कि अभी प्रकृति में जल की प्रधानता है इसलिए मूत्र अधिक हो रहा है, या हेमंत में प्रकृति में की रुक्षता के कारण खुजली बढ़ गयी है। पर जो  असंवेदनशील या प्रकृति स्वरुप के अज्ञाता हैं, वह इसे प्रोस्टेट की बीमारी समझकर जहरीले रसायनों से निर्मित औषधियों का सेवन करके अपने ही हाथों अपने स्वास्थ्य और धन दोनो का नाश कर लेते हैं। 
  यही समस्या जब किसी बुजुर्ग को होती है तो हमें ज्यादा चिंता नही होती, क्योंकि हम सोचते हैं कि अब तो इसकी उम्र है तभी यह स्वभाविक लक्षण आया, लेकिन जब यही समस्या किसी युवा या बच्चे को हो जाती है तो विशेष चिंता का विषय बन जाता है।  
 अतः अब यहाँ दो बातें विशेष रूप से दृष्टिगोचर होती हैं। मूत्र की मात्रा का ज्यादा होना विशेष मौषम (सर्दी में ऋतु में जल की अधिकता)  या विशेष उम्र (60 वर्ष से अधिक) के साथ होता है। 
   *यहाँ एक और बात भी घटित होगी ... यह समस्या उन्हीं को ज्यादा होगी जिसकी प्रकृति जल तत्व प्रधान होगी।* 
   अब पँचतत्व चिकित्सा में ऐसे लोगों के शरीर से जल तत्व को दूसरे तत्व से नियंत्रित या जल तत्व को संतुलित किया तो उसे उस समस्या से छुटकारा मिल जाता है। यही पंचतत्व चिकित्सा का उपचार पद्धति है, जिसके हजारो प्रमाण संस्थान के पास उपलब्ध है।  
  इसे थोड़ा और समझिए ...  आप देखोगे तो ज्ञात होगा कि जिसकी ऊर्जा जल प्रधान है उसको जल से सम्बंधित अनेक रोग अलग - अलग जलवायु या उसी तत्व के जलवायु में मिलेंगे जैसे -  नींद न आना, डरावने सपने आना, डरना, भयभीत होना, किसी भी अंग का सूखना या सिकुड़ना, किसी नस - नाड़ी का बन्द होना, दूसरों को  बेवजह ही समझाते रहना,  अकारण ही सबके हाल चाल पूँछना, सबसे अपना दु:ख - दर्द कहना, सम्मान की विशेष चाह रखना, किसी का सहारा लिए बिना काम ना कर पाना। अकेले करने से घबराना, आदि यह बातें  जल तत्व के असंतुलन होने से प्रकट होती है।
👉🏼 *अब इतनी सारी समस्याओं का इलाज कराने जायेगे तो बहुत सारे स्पेशलिस्ट लगाने पड़ेंगे, अनेकों टेस्ट कराने पड़ेंगे  फिर भी यह दवाओं से ठीक नहीं होगा, बल्कि आप मानसिक बीमार अवश्य हो जाएंगे। लेकिन पंचतत्व चिकित्सा में केवल जल के एक बिंदु पर ट्रीट करके इतनी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है।।*

 *_इसी तरह हर तत्व का अपना एक विशेष मौषम व उम्र होती है, जिसका शरीर जिस तत्व की प्रधानता में होगा वह उस तत्व के मौषम व उम्र के अनुरूप उस तत्व के संभावित गुणों के लक्षण संबंधित रोगी में प्रकट हो जायेंगे।_*

आज की आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में ऐसे अनेकों लक्षणों के नामो से अलग - अलग स्पेसलिस्ट बैठे हैं, जो रोगी समाज को गुमराह कर रहे हैं।  
 अतः जो सर्दी में रोग ग्रस्त हुआ है उसकी प्रकृति जल प्रधान है और जो गर्मी में रोग ग्रस्त हुआ है उसकी प्रकृति अग्नि प्रधान है अतः इसकी सही चिकित्सा  यही है कि मौषम व उम्र के अनुरूप हम संबंधित तत्व की मात्रा को संतुलित कर दे, ना कि बाहर से रासायनिक औषधियों से उन लक्षणों को दबाया जाए। 

 *महाभारत के समय को याद कीजिये वहाँ ऐसी क्या चिकित्सीय व्यवस्था थी जो  एक घायल योद्धा को रात भर में टूटे, जख्मी अंगों को ठीक करके पुनः अलगे दिन युद्ध के लिये तैयार कर देती थी ..??* उशी चिकित्शा के एक मुख्य भाग है पंचतत्व चिकित्सा अतः इस चिकित्शा पद्धति को सीखने समझने हेतु आप इस प्रशिक्षण शिविर में भाग ले सकते है।*

पँचतत्व चिकित्सा प्रशिक्षण कैसे प्राप्त करें :-
अभी आगामी पँचतत्व प्रशिक्षण शिविर 21, 22 व 23 मार्च में आयोजित है, जिसके लिए रजिस्ट्रेशन प्रोसेस चल रही है, क्योंकि शिविर में एक निश्चित संख्या में ही प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षुओं का चयन किया जाता है।

पँचतत्व चिकित्सा ऑनलाइन कैसे प्राप्त करें :-
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🌹 *पंचतत्व आरोग्यम् सेवा संस्थान, पलवल* 🌹

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