बिमारियों का मकड़जाल

🌅 *बीमारियां पर दो शब्द* 🌅
    🏵 *चार प्रकार के रोग*🏵

*साध्यो साध्य इति व्याधिर्द्विधा, तौ तु पुनर्द्विधा।*
*सुसाध्यः कृच्छ्साध्यश्च, याष्यौ यश्चानुपक्रमः।*
*सर्वौषधक्षमे देहे यूनः पुंसो जितात्मनः।*
*अमर्मगोअ्ल्पेहत्वग्ररूपरूपोअ्नुपद्रवः।।*
अर्थात्  :- शास्त्रों में रोग चार प्रकार के बताये गए हैं।
*साध्य व असाध्य*
फिर यह दोनो रोग सुखसाध्य और कृच्छसाध्य के अनुसार   दो प्रकार के होते है।

*सुखसाध्य रोग :-*  में रोगी का शरीर सब प्रकार की औषधियों को सहन कर लेता है। रोगी युवा होना चाहिए। सन्यासी होना चाहिए, रोग मर्म स्थान में ना हो, थोड़े कारणों से पैदा हुआ हो। रोग के पूर्व लक्षण कम हो, रोग में कोई उपद्रव ना हो। दुष्य, देश, ऋतु और प्रकृति के अनुसार अलग - अलग हो। रोगी संयमी हो।
अर्थात् वह जो आसानी से ज्ञात हो जाये पता और सावधानी व परहेज़ से जल्द ठीक हो जाये।

*कृच्छसाध्य रोग :-*  जो रोग शस्त्र क्षार अग्नि से साध्य हो। यानि वह रोग जो कठिनाई से, बहुत उपायों के बाद उत्पन्न होता है।
सुखसाध्य के लक्षणों से विपरीति लक्षण हो। युवा हो पर स्त्री होने हो तो कष्टसाध्य है, क्योंकि स्त्रियों डर, कोमल व लज्जा के गुण होते हैं।
👉🏼 जिन विमारियों पर अब तक शोध हो चुका है उन विमारीयों का इलाज संभव है। जिन बीमारियों की उत्पत्ति जीवाणु, वैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस द्वारा होती है जैसे - टी बी, टायफाइड, टिटनेस, मलेरिया, न्यूमोनिया आदि। इन विमारीयों के कारणों का पता लगने के कारण इनकी दवाएं विकसित की जा चुकी हैं इसलिए इनका इलाज स्थायी रूप से संभव है।

*याप्य रोग :-* जिसके लक्षण सुखयसाध्य से विपरीति हो। यानि क्रिया - चिकित्सा आदि से शान्त रहता है। जैसे गिरते हुए मकान को किसी टेका से, थोड़ी मरम्मत से कुछ समय के लिए रोक दिया जाए।
जो सह सह के ठीक करनी पड़ती बहुत यत्न करना पड़ता है।

*असाध्य रोग :-* जो सुखसाध्य से विपरीत लक्षणों से विपरीत , जिसमें उत्सुकता बनी रहे, उसकी कामचेष्ठा में मन लगा रहे, बेचैनी अधिक हो, जिसमें मृत्य सूचक लक्षण (यानि आँख, कान, स्पर्श नष्ट हो) विद्यमान हो।
👉🏼 असाध्य विमारियां की उत्पत्ति किसी जीवाणु, बैक्टीरिया, पैथोजन, फंगस, वॉयरस आदि से नहीं होती इसलिए इनके कारणों का पता नहीं लग पाया है। जब इनके कारणों का ज्ञात नहीं हुआ तो इनकी दवायें भी विकसित नहीं हो पायी हैं। जैसे - अम्लपित्त ( Stomach Acidity ), दमा ( Asthama ), गठिया, जोड़ों का दर्द (Arthritis ), कर्क रोग ( Cancer ), कब्ज, मधुमेह, बबासीर, भगन्दर, रक्तार्श ( Piles , Fistula ), आधाशीशी ( Migrain ), सिर -दर्द, प्रोस्टेट आदि।   

       *ऐसी अनेक विमारियां है जिस दिन शुरू हो गयी मरने तक दवा खाते रहो तब भी ठीक नहीं होगी, कारण कोई जीवाणु व वायरस नहीं मिला जिससे दवा बन सके। इसीलिए यह आसध्य बीमारियां (Chronic, Long term, Incurable Diseases ) की संज्ञा दी गयी।*

👉🏼 अतः चिकित्सक साध्य - असाध्य का परीक्षण करे तथा जहाँ यश, धन, कीर्ति व उद्देश्य हो वहाँ रोगी को ठीक करने का उद्देश्य होता है। 

१. *पेट की अम्लता -* पाचन तंत्र की अम्लता पाचन तंत्र में किसी खास विकार के कारण के कारण उत्पन्न होता है। आधुनिक विज्ञान में इसको दूर करने के लिए क्षारीय गोलियां दी जाती है। यह गोलियां जाकर पेट में अम्ल को खत्म करता है, और हम सोचते हैं हम ठीक हो गए। इसे एक वैज्ञानिक Le Chatilier's के एक सिद्धांत से समझा जा सकता है । In a system at equilibrium , if a constraint is brought, the equilibrium shift to a direction so as to annal the effect.
  यानि जैसे -जैसे आप किसी दवाई द्वारा पेट की एसिडिटी मिटायेंगे वैसे - वैसे पेट एसिड बनाता जायेगा और वीमारी को दीर्घकालिक असाध्य रूप में बदलकर अल्सर का रूप ले लेगी।

२. *दमा / उच्च रक्तचाप : -*  ब्लडप्रेशर हो जाने पर इसमें जो भी दवायें दी जाती है उससे रक्तवाहनियां लचीली हो जाये या उनका व्यास बढ़ जाये। जैसे व्यास बढेगा वहाँ दूसरा सिद्धांत लागू हो जायेगा इससे रक्त का दबाव तो कम हो जायेगा क्योंकि फ्लो बढ़ गया, लेकिन  इस दवा से रक्तवाहनियां जो की लचीली प्रवर्ति होती हैं वह फिर उसी अवस्था में आ जाती है लिहाजा फिर गोली लो, फिर धमनियां फैलाओ इस प्रकार यह क्रम दीर्घकालिक रोग रूप ले लेता है।

*हृदय रक्त वाहनियों के अवरोध ( Coronary Artery Blockin ) : -*  ऐसा होने पर डॉक्टर बलून एंजियोप्लास्टी करते हैं जिसमें जिस जगह ब्लॉक रहता है उस जगह स्टेंट डालकर रक्त के परिसंचरण के लिए खोला जाता है , अब रक्त उस स्टेंट यानि स्प्रिंग के भीतर से जाना शुरू करता है।  *यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस ब्लॉक को दूर करने के लिए कोई भी उपचार नही किया जाता है।* लिहाजा 92% लोगों के रक्त नलिकाओं में फिर से ब्लॉक आ जाता है । जो कि Wound Healing व Foreign Body के कारण होता है । जब स्प्रिंग के आगे -पीछे पुनः ब्लॉक बन गए तो डॉक्टर के पास बायपास के अलावा कोई उपचार नहीं बचता है , लेकिन समस्या का स्थाई समाधान नहीं मिलता है ।

४. *बबासीर / मूल व्याधि ( Piles ) :-* यहां पर भी गुदा द्वार के बाहर आये हुए मस्सों को शल्य क्रिया द्वारा काट दिया जाता है जबकि गुदाद्वार के अंदर स्थति रक्तवाहनी के नर्व का कोई भी इलाज नहीं किया जाता जिससे यह समस्या पुनः आ जाती है।

५. *गठिया / जोड़ों का दर्द ( Arthritis ) :-*  आधुनिक विज्ञान के पास इस वीमारी के लिये या तो पेन किलर है या फिर पें किलर काम करना बंद कर दे तो डॉक्टर स्टेराइड देना शुरू कर देते हैं। स्टेराइड खुद 20 से 25 बीमारियों को जन्म देता है। ज्यादा घुटनो के दर्द में घुटना बदलकर कृतिम घुटना लगा दिया जाता है ।
      इस प्रकार आप देखेंगे कि आसध्य विमारियों के इलाज में उत्पन्न कारणों को नजर-अंदाज करके वीमारी को आसध्य बना दिया जाता है।

*ऐसी स्थति क्यों ..?*

जब जो शरीर भगवान ने मनुष्य को सतयुग में दिया था वही शरीर कलियुग में भी है वही श्वसन, वही रक्तपरिसंचरण, वही हँसना -रोना, मल-मूत्र विसर्जन उस समय भी था और आज के समय में भी है कहीं कोई अंतर नहीं है।

*हम जब भी कोई भी मशीन लेते हैं  बिना उसका मैनुअल पढ़े उसको ऑपरेट नहीं करते फिर यह कैसी विडम्बना है कि मानव जैसी जटिल मशीन को जो अपने जैसे मशीन को जन्म देने की क्षमता रखती हो उसको बिना किसी ऑपरेटिंग मैनुअल ( गीता, आयुर्वेद ) पढ़े चलाते हैं ।*

ध्यान रहे किसी कुत्ते को, गाय को,  बंदर को या अपने शिशु को  कोई हानिकारक चीज खिलाइये वह तुरंत थूक देता है, या जबरदस्ती से खिलाया तो उल्टी कर देगा या फिर चमड़ी रोग, फोड़ा - फुंसी, मल -मूत्र , पसीने के रास्ते बाहर आ जायेगा। लेकिन जैसे - जैसे हम बड़े हो रहे हैं अपनी जीभ के सुख के लिये नित्य-प्रति  हानिकारक पदार्थ को ग्रहण करते हुये  प्रकृति के नियमो की उपेक्षा करते हुए दीर्घकालिक असाध्य विमारीयों के चक्रव्यूह में स्वतः फंसते जा रहे हैं ।।


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