वायु प्रदूषण

🏵 वायु प्रदूषण 🏵

हम जैसे कुछ समझदार लोग  2 दिसम्बर को राष्ट्रीय प्रदूषण के नाम पर कुछ पोष्ट, पेड़ - पौधे की फोटो भेजकर अपना कार्य पूरा कर लेते, मेरे में से कुछ समझदार लोग दो चार पेड़ लगाने की सेल्फी  डालकर वायु देवता पुण्यतिथि भी मना लेते है। हमारे से कुछ और समझदार लोग जब दिल्ली जैसे कुछ महानगरों प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है तो टीवी डिवेट में एकाध सप्ताह बैठकर एक दूसरे पर छींटाकसी करके अपना जीवन सफल कर लेते हैं। और आमजन को कोई समस्या ही नहीं होती कि आक्सीजन का लेवल कितना है, उन्हें तो बिजली और पानी  के 200 रुपये की छूट, और स्कूल में मिड डे मील, फ्री के वजीफे की तारीख ना निकल जाए इसी में ज्यादा ध्यान पड़ता है।  

      एक दिन बैठकर सोच रहा था, कि पहले जनसंख्या कम रही होगी, तो प्रदूषण भी कम रहा होगा, पेड़ - पौधे ज्यादा रहे होंगे तो लोगों की इसकी चिंता की आवश्यकता नहीं रही होगी पर मुझे एक नयी जानकारी ज्ञात हुई, उस समय भी जब इतना प्रदूषण नही था तो शास्त्र क्या कहते थे .... 


वेदों में प्रदूषण समस्या समाधान

पानी, वायु, अग्नि, पृथ्वी,  आकाश यह सृष्टि के पंच आधारभूत देव है। अर्थववेद में इन भूतों में वायु को प्राण कहा है। प्राण यानि जीवन। 

  वायु पिता के समान पालक बन्धु के समान धारक पोषक जीवन दाता है यानि वायु अमरत्व निधि है।

वेदों में दो प्रकार की वायुओं का वर्णन है। एक जो समुद्रपर्यन्त जाती है और दूसरी समुद्र से भी परे दूर देश तक बहती है। इनमें एक वायु शरीर के बल को प्राप्त कराती है और दूसरी वायु प्रदूषण को हटाती है।

वायु को प्रदूषण मुक्त करने में वृक्षों का महत्त्वपूर्ण स्थान है अथर्ववेद में कहा है कि जिस पृथ्वी में नाना प्रकार के वनस्पति सदा स्थिर नित्य रूप से विराजते हैं, इसलिए
 समस्त जगत को धारण करने वाली पृथ्वी देवी की हम स्तुति करते हैं।

  ऋग्वेद का ऋषि कामना करता है कि प्रदूषण-मुक्त कल्याणकारी वायु मेरे चारों ओर बहे। 
संहिताओं में भी वर्णित है कि  अन्तरिक्ष को प्रदूषण से मुक्त करके शान्ति स्थापना के लिए   परम आवश्यक है। 

वायु नीचे द्वार वाले (स्तर वाले)  मेघ को अन्तरिक्ष और पृथ्वी की ओर प्रेरित होकर वन,  औषधियों, और प्राणियों के प्राणों की रक्षा करता है। इसीलिए वेदों में प्रार्थना की गई है कि हे वाय!  तुम औषधीय गुणों से युक्त ओस जल को प्राप्त कराओ और हानिकारक प्रदूषित वायु को हमारे मध्य से दूर ले जाओ। तुम ही शुद्ध एवं प्रदूषण-रहित होते हुए सम्पूर्ण औषधियों के भण्डार हो। इसलिये तुम्हें दिव्यशक्तियों का दूत कहा जाता है। 

अथर्ववेद में वृक्षों के वानस्पत्य औषधि और वीरुध के चार भेद बताए गए हैं।

जिन पर पुष्प न आकर सीधा फल लगे यथा-वट बड़ पीपल गूलर आदि वे वनस्पति हैं। तथा जिन पर फूल और फल लगें जैसे बेल आम जामुन आदि वे वानस्पत्य है।

जो फलोपरान्त सूख जाते हैं- मक्का, ज्वार गेहूँ, जौ आदि, वे औषधियाँ हैं तथा जिनमें सहारे के लिये तन्तु होते हैं या जो स्वयं फैल जाती हैं
खरबूज तरबूज गिलोय लता आदि वे वीरुध हैं।

वेद में इन सबको वृक्ष नाम से पुकारा गया है, और आदेश दिया गया कि मनुष्य को किसी वृक्ष या वनस्पति को नष्ट नहीं करना चाहिए।

शतपथ ब्राह्मण में भी लिखा है कि संसार की सर्वाधिक हितकारी इन औषधियाँ का  कभी नाश ना करो, इसीलिए
पीपल के वृक्ष में देवताओं यानि अर्थात दिव्य शक्तियों का निवास माना है

जनश्रुति के अनुसार पीपल  पर ब्रह्मराक्षस का निवास होता है यह इसीलिये प्रसिद्ध किया गया जिससे लोग इस वृक्ष को न काटें और यह वायु को अधिक शुद्ध कर सके।

 गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने विश्व की समस्त वस्तुओं में जब अपनी स्थिति प्रकट की तब वृक्ष वनस्पतियों में पीपल के अन्तर्गत अपनी सत्ता को दिखाते हुए कहा है कि मैं वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ।

 हिन्दू समाज में पीपल के वृक्ष को काटना पुत्र हत्या के समान माना जाता है
अत: इसे लोग काटते नहीं हैं 
अपितु प्रार्थनाएँ की जाती हैं ...
अथर्ववेद का ऋषि कहता है हे वृक्षों! तुम में हमारे दु:खों को नष्ट करने का सामर्थ्य है 
अत: तुम हमारे कष्ट दूर करो हम तुम्हें सैकड़ों शाखाओं से बढ़ाते हैं। जिस प्रकार माता अपने पुत्रों को दु:खों से हटाकर सुखी करती है उसी प्रकार हे वृक्ष प्रदूषण से हमें बचाकर तुम हमें सुखी करो। 
अन्यत्र अजशृंगी से प्रार्थना की गई है हे अजशृंगी! अपनी गन्ध से तुम वायु में और जल में व्याप्त होकर प्रदूषण बढ़ाने वाले राक्षस रूपी जीवों को नष्ट करो। 
इसी प्रकार अपामार्ग का वर्णन है कि उसके द्वारा वैज्ञानिकों ने प्रदूषण रूपी असुरों पर विजय प्राप्त की
21 वेदों में दर्भ सोमलता, अपामार्ग, पाट, पिप्पली, पृश्निपर्णी ऋषभ, मधुला, मुञ्ज, सहस्त्रकाण्ड, आव्रयु, शमी, वर्णवती, करीर, पलाश, ढाक, मदावली, उदुम्बर, शतावर आदि 700 के लगभग वनस्पतियों से जीवनरक्षा के लिये इन्हें महोपकारी होने के कारण माता के नाम से पुकारा गया ह। पुराणकार ने कहा है कि एक वृक्ष दस पुत्रों के समान सुखकारी होता है
- वृक्ष का एक पर्यायवाची नाम तरु भी होता है जिसका अर्थ है मनुष्यों को प्रदूषण रूपी दु:खों से पार उतारने वाला। 
अग्नि पुराणकार ने लिखा था
यदि कोई व्यक्ति अपने वंश का विस्तार एवं धन और सुख में वृद्धि की कामना करता है तो वह फल-फूल वाले किसी वृक्ष को न काटे।

पर आज धर्म को छोड़ने के कारण पंचभूत स्वयं रोगग्रस्त है, फिर वह मनुष्य या मनुष्य के जीवन् रक्षक आहार बनस्पतियों को पोषकता कहाँ से देंगे।


🌹 ज्ञानस्य मूलम् धर्मम्🌹

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