हरड़ , हर्रे , हरीतिका
🌅 हरड़ , हर्रे , हरीतिका🌅 🌹 यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी। कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥ राजबल्लभ निघण्टु के अनुसार- ( अर्थात् - हरीतकी मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली है। माता तो कभी - कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर स्थिति अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती। ) हरड़ के औषधीय गुण:- *"कषाय मधुरा पाके रुक्षा विलवणा:,* *दीपनी पाचनी मेध्या वयस: स्थापनी परम्* *उष्णवीर्या सराअयुष्या बुद्धिन्द्रिय बल प्रदा* *कुष्ठ वैवर्ण्यवैस्वर्युपुराण विषम ज्वरान्* *शिरोअक्षिपाण्डुह्यद्रोग कामला गृहणी गदान्* *सशोषशोफाती सारमेदोमोह वमिक्रिमीन्* *श्वासकासप्रसेकार्श: प्लीहानाहगरोदरम्* *विवन्ध स्त्रोतसां गुल्ममूरूस्तम्भ मरीचकम्* *हरीतकी जयोद्वयाधींस्ता स्ताश्र कफवात जाना* अर्थात् :- कषाय रस, विपाक में मधुर, रुक्ष, लवण को छोड़कर शेष पांचो रस वाली, लघु अग्नि-दीपक, पाचन, मेध्य, वय का स्थिर रखने में अतिशय श्रेष्ठ है। उच्चवीर्य, सर, आयु-वर्धक, बुद्धि और इन्द्रियों को बल देने वाली, कुष्ट, विवर्णता, श्वर-भेद, पुरातन ज्वर, वि...